सोलह सोमवार व्रत कथा | Solah Somvar Vrat Katha In Hindi

सोलह सोमवार व्रत कथा ( Solah Somvar Vrat Katha In Hindi ) भक्ति और आराधना का अमृत संगम भारतीय संस्कृति में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। ये धार्मिक अवसर लोगों को संसारिक जीवन की भागमभाग से दूर ले जाते हैं और उन्हें आध्यात्मिकता की ओर प्रवृत्ति करते हैं। Solah Somvar Vrat Katha भारतीय हिंदू समुदाय में विशेष रूप से माना जाता है। इस व्रत की कथा भक्तों के द्वारा प्रेम और श्रद्धा से सुनाई जाती है, जिसमें माँ पार्वती, भगवान शिव, और भक्त अपार प्रेम के भाव से जुड़े हुए हैं। चलिए, इस व्रत की महान कथा को जानते हैं।
Solah Somvar Vrat Katha in hindi


सोलह सोमवार व्रत की तैयारी

1. संकल्प
व्रत की शुरुआत संकल्प से होती है, जिसमें व्रती अपने मन में निश्चय करता है कि वह सोलह सोमवार व्रत करेगा। इसमें वह अपने संकल्प को प्रकट करता है और शिवजी से व्रत विधि का सम्मान करता है।

2. व्रती के संगी
व्रती एकांतवास नहीं करते हैं। इसलिए, उन्हें व्रत के समय साथी चाहिए, जो उन्हें व्रत धारण करते समय सहायता करें।

3. स्नान और पूजा सामग्री
व्रती को प्रत्येक सोमवार को स्नान करना चाहिए और भगवान शिव की पूजा के लिए सामग्री जैसे जल, धूप, दीपक, बेलपत्र, धातु का कलश, फूल, अर्क, भोग आदि की तैयारी करनी चाहिए।

सोलह सोमवार व्रत कथा | Solah Somvar Vrat Katha In Hindi


एक समय की बात है, एक गांव में एक साधू बाबा रहते थे, जिनका नाम श्रीदास था। उनके साथ उनकी पत्नी सुमति और पुत्र बलकृष्ण भी रहते थे। श्रीदास और सुमति का जीवन धन-धान्य से समृद्धि भरा था, लेकिन उनके जीवन की एक अभिशापी समस्या थी। वे अपने बच्चे को भगवान शिव के भक्त नहीं बना पा रहे थे।

श्रीदास और सुमति ने बहुत कोशिश की बलकृष्ण को शिवजी के भक्त बनाने की, परंतु वह अपनी माँ के वचन से विचलित होकर कान खोल लेता और शिवजी के ध्यान में नहीं रहता था।

एक दिन, श्रीदास और सुमति को अपने गांव से दूर विदेह नगरी जाना पड़ता है। वहां शिव मंदिर में शिवरात्रि का विशेष महोत्सव मनाया जा रहा था। इस अवसर पर बलकृष्ण की रुचि प्रकट होती है और वह भी मंदिर जाने को उत्सुक हो जाता है।

शिव मंदिर में पहुंचकर बलकृष्ण शिवलिंग के समीप खड़ा हो जाता है। उसके हृदय में अचानक एक अद्भुत बदलाव हो जाता है। वह शिव के ध्यान में खो जाता है और भक्ति भाव से भव्य शिव भजन गाने लगता है।

बलकृष्ण की इस दिव्य अनुभूति को देखकर श्रीदास और सुमति भयभीत हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चा पागल हो गया है। लेकिन उन्हें अपने बच्चे की इस दिव्य भक्ति का रहस्य जानने की इच्छा होती है।

श्रीदास और सुमति को व्रत का महत्व समझ में आता है और उन्हें बच्चे के शिवभक्ति में विश्वास हो जाता है। इसके बाद, वे भी सोलह सोमवार व्रत करने का निश्चय करते हैं।

बलकृष्ण ने भगवान शिव के व्रत का पालन करना शुरू कर दिया। प्रत्येक सोमवार को वह शिवलिंग पर जल चढ़ाता था, धूप, दीपक और बेलपत्र चढ़ाता था, और भक्ति भाव से भजन गाकर मंदिर से लौटता था।

शिवरात्रि के एक सोमवार को बलकृष्ण को भगवान शिव का आभास होता है। भगवान शिव अपने भक्त के प्रेम को देखकर प्रसन्न होते हैं और उनकी आराधना का आशीर्वाद देते हैं।

बलकृष्ण के सच्चे विश्वास और अद्भुत भक्ति ने भगवान शिव को प्रसन्न किया। उन्होंने बलकृष्ण के प्रति अपार प्रेम और समर्पण देखकर भगवान शिव ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया।

Solah Somvar Vrat Katha ( व्रत के फल )

1. भगवान शिव की कृपा
श्रीदास और सुमति के भक्त बने बलकृष्ण को भगवान शिव की कृपा मिलती है। उनके जीवन में समृद्धि, सुख, और शांति का आभास होता है।

2. परिवार के संबंधों में आनंद
श्रीदास के परिवार के सदस्य भगवान शिव के भक्त बनने के फलस्वरूप उनके संबंधों में आनंद आता है। उनके परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के साथ प्रेम और समर्थन का भाव रखते हैं।

3. आध्यात्मिक उन्नति
बलकृष्ण के व्रत का पालन करने से श्रीदास और सुमति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। उनका मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है और उन्हें भगवान के प्रति अधिक आकर्षण होता है।

4. समस्त कष्टों का निवारण
भगवान शिव के भक्त बनने से श्रीदास और सुमति के समस्त कष्टों का निवारण होता है। उन्हें समृद्धि, सुख, और शांति मिलती है और उनका जीवन सफलता से भरा होता है।


इस प्रकार, सोलह सोमवार व्रत कथा भगवान शिव के अद्भुत प्रेम और भक्ति की कहानी है। यह व्रत भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति और समृद्धि का अनुभव कराता है। इस व्रत के पालन से मनुष्य का मन शुद्ध होता है और उसका जीवन सुख-शांति से परिपूर्ण हो जाता है।

Solah Somvar Vrat Aarti: सोमवार के दिन करें शिव आरती का पाठ


ॐ जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगी धारा।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजेश्वरा।

हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुन रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

छवि को ढग नगरी साजे शिवसहस्त्रान्ता।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बागम्बर अंगे।

संगे चक्र त्रिशूलधर, जटा में गंगे।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

कर में सदाधारी त्रिशूल भजे जगतपाल।

मधुमाकर बृषभध्वजा, सानंदन रंजन।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्राणी अति पापी, भव-बंधन की वेगा।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

मृगधर को आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, सुखी भव-भव।।

ॐ जय शिव ओंकारा॥

** प्रेम से बोलिये माता पारबती की जय भगवन शंकर की जय **


FAQs (अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न)

सोलह सोमवार व्रत कितने दिनों का होता है?
यह व्रत किसी एक बार शुरू करके 16 सोमवार तक किया जाता है।

इस व्रत का अनुष्ठान कौन कर सकता है?
यह व्रत हर वयस्क और आस्तिक व्यक्ति द्वारा अनुष्ठान किया जा सकता है।

व्रत के दौरान क्या भोजन करना चाहिए?
व्रत के दौरान शाकाहारी भोजन और फल-फूल का सेवन करना उचित है। भगवान शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से व्रती को धन-धान्य मिलता है।

क्या इस व्रत को अनवरत रूप से रखना आवश्यक है?
नहीं, यह व्रत विशेष अवसरों पर ही अनुष्ठान किया जाता है, जैसे शिवरात्रि आदि।

व्रत का महत्व क्या है?
यह व्रत भगवान शिव के प्रति भक्ति और विश्वास का प्रतीक है, जिससे व्रती को आध्यात्मिक और आर्थिक उन्नति होती है।

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