Chhath Puja Vrat Katha: छठ पूजा की ये पावन कथा दूर करेगी आपकी हर समस्या

Chhath Puja Vrat Katha: छठ पूजा, जो कि भारतीय पर्वों में एक अद्वितीय स्थान रखता है, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, और विशेषकर गोवा में मनाई जाती है। यह व्रत कथा छठी माँ की उपासना का हिस्सा है और सूर्य देवता की पूजा की जाती है। इस लेख में, हम छठ पूजा व्रत कथा के महत्व को जानेंगे और कैसे यह पर्व मानव जीवन को शोभायमान बनाता है। 

Chhath Puja Vrat Katha


Chhath Puja Vrat Katha: छठ पूजा व्रत कथा

छठ पूजा व्रत कथा की शुरुआत भगवान सुर्य की तपस्या से हुई थी। सूर्य भगवान ने पृथ्वी पर आकर अपनी भक्ति किया था।

कौन हैं छठी मइया? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मैया एक देवी हैं जिनका संबंध सूर्य देव से माना जाता है। उन्हें सूर्य देव की बहन और ब्रह्मा नामक एक अन्य देवता की बेटी कहा जाता है। लोग छठ पूजा नामक एक विशेष त्योहार के दौरान उनकी पूजा करते हैं। 

Chhath Puja Vrat Katha In Hindi : छठ पूजा व्रत कथा

Chhath Puja Vrat Katha: एक समय की बात है. एक राजा प्रियनवाद थे, पत्नी का नाम मालिनी था। शादी के काफी बाद साल के बाद भी कोई संत नहीं हुआ। तब उन्होंने कश्यप ऋषि से इसका समाधान पूछा तो उन्होंने यज्ञोपवीत के लिए सुझाव दिया। कश्यप ऋषि ने पुत्रप्राप्ति के लिए यज्ञ कराया और राजा की पत्नी मालिनी को प्रसाद स्वरूप अर्पित किया।

उसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई, जिससे राजा प्रियनवाद खुश हो गए। कुछ समय बाद रानी के एक पुत्र का जन्म हुआ, लेकिन वह भी मर गया। इस खबर से राजा को बहुत दुख हुआ। वे पुत्र के शव को लेकर श्मशान गए और इस दुख के कारण अपना भी प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया।


जब वे अपना प्राण त्यागने जा रहे थे, तभी देवी देवसेना अवतरित हो गईं। उन्होंने राजा प्रियंवद से कहा कि उनका नाम षष्ठी है। हे राजन! तुम मेरी पूजा करो और लोगों को भी मेरी करने को कहो। लोगों को इसके लिए प्रेरित करें.

देवीसेना देवना आज्ञा के अनुसार राजा प्रियनवद ने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पूजा की। उन्होंने यह पूजा पुत्र प्राप्ति की कामना से की थी। छठी मैय्या के शुभ आशीर्वाद से राजा प्रियंवद को पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से हर साल कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ पूजा की जाने लगी।

जो व्यक्ति जिस मन के साथ छठ पूजा का व्रत रखता है और उसकी विधि बताता है, छठी मैया के आशीर्वाद से उसका मन ही पूर्ण होता है। लोग पुत्र प्राप्ति और संत के सुख जीवन के लिए ये व्रत रखते हैं।

छठ पूजा एक विशेष त्योहार है जो हमें प्रकाश और गर्मी देने के लिए सूर्य को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। यह अक्टूबर या नवंबर माह में होता है। इस दौरान लोग नदियों या तालाबों के पास जाकर पूजा करते हैं और सूर्य के लिए विशेष भोजन बनाते हैं। वे पानी में स्नान भी करते हैं और अपना धन्यवाद व्यक्त करने के लिए गीत भी गाते हैं। यह एक ख़ुशी का समय है जब परिवार एक साथ आते हैं और सूर्य की ऊर्जा और हमारे जीवन में इसके महत्व का जश्न मनाते हैं।

Chhath Puja Vrat Katha

छठ पूजा कब और क्यों मनाया जाता है ?

छठ पूजा भारत में एक विशेष उत्सव है जो नवंबर में होता है। यह सब सूर्य देव की पूजा करने और उनकी ऊर्जा के लिए उन्हें धन्यवाद देने के बारे में है। लोगों का मानना ​​है कि ऐसा करने से उन्हें सौभाग्य और खुशी मिलेगी। पूजा तब होती है जब सूर्य उदय हो रहा होता है और जब अस्त हो रहा होता है, क्योंकि उस समय सूर्य सबसे मजबूत होता है। यह उत्सव दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति में सूर्य का कितना महत्व है और लोगों को इसकी ऊर्जा का अच्छे तरीके से उपयोग करना सिखाता है।

छठ पूजा कितने घंटे का होता है?

छठ पूजा का आयोजन लगभग 36 घंटे के दौरान होता है। यह पूजा छठी तिथि की सवेरे शुरू होती है और दूसरे दिन सूर्यास्त के समय समाप्त होती है। इसके दौरान व्रती व्यक्ति को अनिवार्य रूप से नियमित रूप से उपवास करना होता है और विशेष पूजा अनुष्ठान का पालन करना होता है। छठ पूजा के इस दौरान, व्रती व्यक्ति अपनी प्रार्थनाएँ करता है और सूर्य देव का पूजन करता है। इसके साथ ही व्रती व्यक्ति अपने जीवन में सौभाग्य और सुख की कामना करता है।

छठ पूजा व्रत की विधि:(Chhath Puja Vrat Katha)

छठ पूजा व्रत को मनाने के लिए निम्नलिखित विधि का पालन किया जाता है:

पहला दिन (नहाय-खाय): छठ पूजा की शुरुआत पहले दिन सूर्योदय के समय होती है। व्रती व्यक्ति को इस दिन नहाने के बाद सात्विक आहार खाना चाहिए, और उपवास की शुरुआत करनी चाहिए।

दूसरा दिन (खान-पीन): इस दिन व्रती व्यक्ति को खाना-पीना बिना पानी पिए रहना होता है। यह दिन विशेष ध्यान और तपस्या के साथ बिताना चाहिए।

तीसरा दिन (संध्यार्घ्य): इस दिन सूर्यास्त के समय, व्रती व्यक्ति को अपनी पूजा के साथ सूर्य देव के प्रति संध्यार्घ्य करना होता है। इसके बाद, ब्रजमंडल में जल किनारे बैठकर अर्घ्य देना होता है।

चौथा दिन (उषा आर्घ्य): छठ पूजा का व्रत इस दिन सूर्योदय के समय खत्म होता है। व्रती व्यक्ति को उषा आर्घ्य देना होता है, जिसमें सूर्य देव को पूजन करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।

भोजन (पर्ण): छठ पूजा के अनुसरण के बाद, व्रती व्यक्ति को एक सात्विक भोजन खाना चाहिए, और इसके बाद व्रत को पूरा करना चाहिए।

छठ पूजा की विधि का पालन करके लोग सूर्य देव की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं, जिससे उनके जीवन में सौभाग्य और सुख का प्राप्त होता है।

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