Guruvar Vrat Katha ( गुरुवार व्रत की पूरी कथा )|| बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspativar Vrat Katha)

आज हम सभी सम्पूर्ण बृहस्पतिवार व्रत कथा और विधि जानने वाले है!  प्रेम से बोलिये भगवन बृहस्पति की जय ! Guruvar Vrat Katha ( गुरुवार व्रत की पूरी कथा)|| बृहस्पतिवार व्रत कथा | बृहस्पतिदेव की कथा (Brihaspatidev Ji Vrat Katha)  || Viraspati Var Varat Katha || Brihaspativar Vrat Katha

Brihaspativar Vrat Katha | "गुरुवार व्रत कथा " | Thursday Fast

गुरुवार व्रत की पूजा विधि ( Virspati  Var  Vrat Puja Vidhi) – Brihaspativar Vrat Katha

  • व्रत की सुबह उठकर, नहाने के बाद शुद्ध मन और शुद्ध वस्त्र पहनकर ब्रह्ममुहूर्त में उठें।
  • पूजा के लिए बृहस्पति की मूर्ति, तुलसी, अक्षत, फूल, दीपक और पूजा सामग्री तैयार करें।
  • पूजा स्थान को साफ-सुथरा करें और उसे गंगाजल से शुद्ध करें।
  • बृहस्पति की मूर्ति के सामने बैठें और मन्त्रों के साथ पूजा करें। बृहस्पति के मंत्र जैसे “ॐ बृहस्पतये नमः” और “ॐ गुरुवे नमः” का जाप करें।
  • तुलसी के पत्ते, अक्षत और फूल बृहस्पति की मूर्ति को अर्पित करें।
  • दीपक जलाएं और अपनी आरामदायक आसन पर बैठें। ध्यान करें और बृहस्पति की कृपा के लिए प्रार्थना करें।
  • अगले सप्ताह तक बृहस्पतिवार का व्रत नियमित रूप से करें।
  • व्रत के अंत में भोजन का आह्वान करें और पूजा सामग्री को देवी-देवताओं को अर्पित करें। व्रत का खाना सात्विक होना चाहिए और अन्न और पानी का अन्नदान करना चाहिए।

गुरुवार के व्रत में क्या क्या सामग्री लगती है?- Brihaspativar Vrat Katha

गुरुवार के व्रत में निम्नलिखित सामग्री का उपयोग किया जाता है:
  • बृहस्पति मूर्ति: गुरुवार के व्रत में बृहस्पति (गुरु) की मूर्ति का उपयोग किया जाता है। यह मूर्ति आपकी पूजा स्थल पर रखी जाती है।
  • तुलसी पत्ते: तुलसी के पत्ते विशेष रूप से बृहस्पति की पूजा में उपयोग होते हैं। आप तुलसी के पत्तों को पूजा स्थल पर रख सकते हैं या पूजा के दौरान अर्पित कर सकते हैं।
  • अक्षत: अक्षत (चावल के दाने) भी पूजा में उपयोग होते हैं। आप अक्षत को बृहस्पति की मूर्ति पर अर्पित कर सकते हैं और अन्नदान के रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • फूल: बृहस्पति की पूजा में फूलों का उपयोग किया जाता है। आप अपनी पसंद के फूलों को पूजा स्थल पर रख सकते हैं या पूजा के दौरान उपयोग कर सकते हैं।
  • दीपक: पूजा के लिए दीपक भी आवश्यक होता है। आप दीपक को बृहस्पति की पूजा में जला सकते हैं और उसे देवी-देवताओं के समक्ष अर्पित कर सकते हैं।
  • पूजा सामग्री: पूजा के लिए अन्य सामग्री जैसे की कपूर, धूप, गंगाजल, सुपारी, इलायची, दूर्वा, कुंकुम, चावल, पुष्प, आपूर्ति, इत्यादि का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • यह सामग्री आपको अपने गुरुवार के व्रत के लिए आवश्यक होगी। 

गुरुवार (बृहस्पतिवार) की पौराणिक व्रत कथा ||  Brihaspativar Vrat Katha || Guruvar Vrat Katha


बृहस्पतिवार व्रत कथा: प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी। 
 
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती। 

बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं।

तब बृहस्पतिदेव बोले ‘यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए। 
 
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
 
 
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पतिदेव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले ‘हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?’
 
तब व्यापारी बोला ‘हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।’ इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पतिदेव बोले ‘देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।’

साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला ‘महाराज। मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं।’ इस पर साधु जी बोले ‘तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।’
 
उसने लकड़ियां काटीं और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया। 
 
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोज करने गया। लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे, अत: उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया। जब वे दोनों लौटकर आए तब रानी ने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है। रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर दिया गया। कैद में पड़कर दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहां उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया।
बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।

बृहस्पतिवार को कैदखाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकार गुड़ और चने लाने को कहा। इसपर वह स्त्री बोली ‘मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं, मेरे पास समय नहीं है।’ इतना कहकर वह चली गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली, व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा कि हे बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड़-चना ला दो। 
 
बृहस्पतिदेव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली ‘भाई, मैं तुम्हें अभी गुड़-चना लाकर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी लेकिन मैं पहले तुम्हारा काम करूंगी, उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफन लाऊंगी।’
 
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़-चना ले आई और स्वयं भी बृहस्पतिदेव की कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर अपने घर गई। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को ‘राम नाम सत्य है’ कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री बोली ‘मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो।’ अपने पुत्र का मुख देखकर उस स्त्री ने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया। 
 
पहली स्त्री जिसने बृहस्पतिदेव का निरादर किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी कि वह घोड़ी से गिरकर मर गया। यह देख स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देव से क्षमा याचना करने लगी। 
 
उस स्त्री की याचना से बृहस्पतिदेव साधु वेश में वहां पहुंचकर कहने लगे ‘देवी। तुम्हें अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। यह बृहस्पतिदेव का अनादार करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कथा सुनो, तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।’
 
जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कथा सुनी। कथा के उपरांत वह प्रसाद और चरणामृत लेकर अपने घर वापस गई। घर आकर उसने चरणामृत अपने मृत पुत्र के मुख में डाला। चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र भी जीवित हो उठा। उसी रात बृहस्पतिदेव राजा के सपने में आए और बोले ‘हे राजन। तूने जिस व्यापारी और उसके पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिलकुल निर्दोष हैं। तुम्हारी रानी का हार वहीं खूंटी पर टंगा है।’
 
दिन निकला तो राजा रानी ने हार खूंटी पर लटका हुआ देखा। राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाकर दहेज़ में हीरे-मोती दिए।

गुरुवार (बृहस्पतिवार) के व्रत कथा – दूसरा कथा 


बहुत समय पहले के एक गांव में, जहां एक ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम ब्रह्मदत्त था। ब्रह्मदत्त बहुत ही सभ्य और तपस्वी व्यक्ति थे। उनके परिवार में धन, समृद्धि और सुख था, लेकिन एक दिन उनके घर में अकालीन सूखा पड़ गया। अचानक धन, संपत्ति और खुशियां का सब कुछ चला गया। ब्रह्मदत्त के परिवार का संताप बढ़ता गया और उन्हें बहुत ही दुःख हुआ।

एक दिन ब्रह्मदत्त गुरु मन्दिर गए और वहां गुरुदेव को उनकी सभी परेशानियां सुनाई। गुरुदेव ने ब्रह्मदत्त को उनकी परेशानियों का हल बताया। वे बताए कि बृहस्पति (गुरु ग्रह) हमेशा उन्हें सुख, समृद्धि और आनंद प्रदान करते हैं। गुरुदेव ने उन्हें गुरुवार (बृहस्पतिवार) का व्रत करने की सलाह दी और उन्हें व्रत की विधि बताई।

ब्रह्मदत्त ने गुरुदेव की सलाह मानी और गुरुवार से व्रत करना शुरू किया। वे नियमित रूप से गुरुवार के दिन पूजा और व्रत करते थे। धीरे-धीरे उनकी सभी परेशानियां दूर हो गईं और उनका परिवार फिर से धन, समृद्धि और सुख के साथ भर गया। ब्रह्मदत्त ने बृहस्पति की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त किया।

इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि गुरुवार का व्रत करने से व्यक्ति को गुरु की कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन में समृद्धि, सुख और आनंद आते हैं। इसलिए, लोग गुरुवार को बृहस्पति (गुरु) की पूजा और व्रत करते हैं ताकि उन्हें आनंद, शांति और समृद्धि प्राप्त हो सके।

श्री बृहस्पतिवार की आरती- ॐ जय बृहस्पति देवा


जय वृहस्पति देवा,
ऊँ जय वृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,
कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर,
तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,
सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक,
कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,
जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर,
आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,
भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता,
भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,
सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटा‌ओ,
संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर,
सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,
जय वृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।
बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

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